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राजनीतिबांग्लादेश

मालदीव के बाद बांग्लादेश में शुरू हुआ ‘इंडिया आउट’ अभियान

अराफातुल इस्लाम
८ मार्च २०२४

बांग्लादेश में इंफ्लुएंसरों के एक समूह ने ‘इंडिया आउट’ अभियान शुरू किया है. एक ओर जहां बांग्लादेश राजनीतिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है, वहीं देश की चुनाव प्रक्रिया में भारत के कथित प्रभाव पर भी सवाल उठ रहे हैं.

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तस्वीर में दाहिनी ओर नरेंद्र मोदी, बाईं तरफ शेख हसीना.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को चुनाव में जीतने पर बधाई दी. तस्वीर: Naveen Sharma/ZUMA/IMAGO

पड़ोसी देश बांग्लादेश में इस साल जनवरी में आम चुनाव हुए. इनमें अवामी लीग पार्टी ने तीन-चौथाई सीटों पर जीत हासिल की. शेख हसीना लगातार चौथी बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं. हालांकि, कुछ पर्यवेक्षक इस चुनाव को विवादित मानते हैं. 

बांग्लादेश के आम चुनाव मजबूत विपक्ष की गैर-मौजूदगी में हुए. दरअसल, चुनाव से पहले ही मुख्य विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेताओं और उनके 25 हजार से ज्यादा कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया. उनपर आगजनी और बर्बरता करने जैसे आरोप लगाए गए. कई स्वतंत्र पर्यवेक्षकों का मानना है कि आरोप राजनीति से प्रेरित थे.

भारत ने चुनाव परिणामों का स्वागत किया था. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शेख हसीना को जीत की बधाई भी दी. नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "हम बांग्लादेश के साथ अपनी स्थायी और जन-केंद्रित साझेदारी को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

भारत बांग्लादेश के साथ 4,100 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. दोनों देशों के बीच 2020-21 में द्विपक्षीय व्यापार 15 अरब डॉलर से ज्यादा का था. 

जोर पकड़ रहा है 'इंडिया आउट' अभियान

बांग्लादेश के कई इंफ्लुएंसरों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने जनवरी में हुए चुनावों के बाद 'इंडिया आउट' अभियान शुरू किया. उनका दावा है कि मोदी सरकार ने बांग्लादेश में हो रहे लोकतंत्र के हनन को नजरअंदाज किया. साथ ही, अपने हितों को साधने के लिए शेख हसीना के सत्ता में बने रहने का समर्थन किया. 

पिनाकी भट्टाचार्य बांग्लादेश के निर्वासित चिकित्सक और प्रभावशाली सोशल मीडिया कार्यकर्ता हैं. शेख हसीना के आलोचक भट्टाचार्य फ्रांस की राजधानी पेरिस में रहते हैं. उन्होंने जनवरी के मध्य में 'इंडिया आउट' अभियान की घोषणा की. साथ ही ‘बांग्लादेश के घरेलू मामलों में भारत के निरंतर हस्तक्षेप' के विरोध में अपने लाखों फॉलोवर्स से भारतीय उत्पादों को ना खरीदने का आग्रह किया. 

भट्टाचार्य ने डीडब्ल्यू से कहा, "हस्तक्षेप का एक बड़ा उदाहरण जनवरी में हुए चुनावों के दौरान देखा गया, जो लोकतंत्र का मजाक उड़ाने जैसा था. उस दौरान भारत ने एक ऐसी सरकार को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो उसके रणनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक एजेंडा का पुरजोर समर्थन करती है." 

बांग्लादेश में सोशल मीडिया पर इस अभियान को समर्थन मिल रहा है. रिपोर्टों से पता चलता है कि कुछ बांग्लादेशी लोग भारतीय उत्पादों के विकल्पों को तरजीह दे रहे हैं. 

क्या संभव है भारत का बहिष्कार

कुछ विशेषज्ञों को संदेह है कि इस तरह के अभियान का ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि दोनों देशों के बीच संबंध बहुत गहरे हैं. बांग्लादेश भारत पर इतना निर्भर हो चुका है कि भारत का पूर्ण रूप से बहिष्कार करना संभव नहीं है. 

अली रियाज ‘इलिनोइस स्टेट यूनिवर्सिटी' में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं. वह मानते हैं कि इस अभियान से एक राजनीतिक संदेश जुड़ा हुआ है, जिसका प्रभाव तात्कालिक सफलता तक सीमित नहीं है. रियाज ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह अभियान बांग्लादेश की उचित शिकायतों के प्रति भारत की उपेक्षा और बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में भारत की भूमिका की वजह से बढ़ते असंतोष को दिखाता है."

रियाज के मुताबिक, यह धारणा निराधार नहीं है कि बांग्लादेश में लोकतंत्र के हनन और खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड के बावजूद भारत ने प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता में बने रहने में मदद की. इसकी पश्चिमी देशों ने भी आलोचना की थी. रियाज आगे कहते हैं, "यह पहली बार नहीं है, जब भारत ने शेख हसीना की मदद की है. 2014 और 2018 में हुए चुनावों के दौरान भी भारत ने हसीना का साथ दिया था. इन दोनों चुनावों में हसीना की पार्टी को जिताने के लिए मतदान में धांधली हुई थी."

बांग्लादेश की सरकार इन आरोपों से इनकार करती है. सत्ताधारी अवामी लीग पार्टी के सांसद मोहम्मद ए अराफात 'इंडिया आउट' अभियान को ऐसा मुद्दा नहीं मानते, जिसपर बात होनी चाहिए. अराफात कहते हैं कि भारत नहीं, बल्कि अमेरिका ने देश के घरेलू मामलों में दखल देने की कोशिश की थी. उसने पिछले साल चुनावों को प्रभावित करने वाले बांग्लादेशी नागरिकों पर वीजा प्रतिबंध लगा दिए थे.

अराफात ने डीडब्ल्यू से कहा, "ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास ने चुनावों में गहरी दिलचस्पी दिखाई थी. चुनाव आयोग समेत कई जगहों पर बैठकें आयोजित करवाई थीं. भारत ने ऐसा कुछ नहीं किया था." अमेरिका ने कहा था कि बांग्लादेश के हालिया चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से नहीं हुए. हालांकि, उसने चुनाव में हुई गड़बड़ियों के जवाब में नए दंडात्मक उपायों की घोषणा नहीं की थी.

भट्टाचार्य और रियाज दावा करते हैं कि भारत ने अपनी कूटनीति के जरिए अमेरिका को इस बात के लिए राजी किया था कि वह लोकतंत्र और मानवाधिकार के मुद्दों को लेकर बांग्लादेश के खिलाफ कोई कदम ना उठाए. वहीं, अमेरिका ने बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में दखल देने के आरोपों से इनकार किया है. 

'इंडिया आउट' पर भारत की राय क्या है

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने भी अपने देश में 'इंडिया आउट' का नारा दिया था. विपक्ष के नेता के तौर पर उन्होंने मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग की थी. माना जाता है कि मालदीव में करीब 75 भारतीय सैनिक तैनात हैं. वे दूरदराज के द्वीपों से मरीजों को लेकर आने और समुद्र में फंसे लोगों को बचाने जैसे काम करते हैं. 

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि भारत 'इंडिया आउट' अभियानों को लेकर चिंतित नहीं है. उन्होंने 30 जनवरी को मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, "हमें दो सच्चाइयों को पहचानना होगा. चीन भी एक पड़ोसी देश है और वह प्रतिस्पर्धी राजनीति के तहत इन देशों (मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश) को कई तरीकों से प्रभावित करेगा."

शांतनु मुखर्जी पूर्व आईपीएस हैं और बांग्लादेश से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ हैं. उनका मानना है कि बांग्लादेश में कुछ भारत-विरोधी ताकतें हैं, लेकिन उनकी संख्या काफी कम है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "बांग्लादेश में मौजूद भारत-विरोधी लोग नहीं चाहते कि दोनों देशों के बीच रिश्ते और मजबूत हों. ये रिश्ते जितने ज्यादा मजबूत होंगे, भारत-विरोधी अभियान भी उतना ही आगे बढ़ता जाएगा."

पिनाकी भट्टाचार्य कहते हैं, "इंडिया आउट अभियान में भारत के लोगों के प्रति कोई नफरत नहीं है. यह एक राजनीतिक लड़ाई है, जिसके निशाने पर भारत का शासक वर्ग है. यह हमारी मातृभूमि की संप्रभुता वापस हासिल करने के लिए लगातार चल रही लड़ाई है."

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